एक भयानक परिंदा किसी इंसान को खा रहा है और उसको बचाने के लिए मैं कुछ नही कर पा रहा हूं ,उल्टे अपनी जान गंवाने का खतरा मंडरा रहा है।
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नरेंद्र त्यागी "नीर" मेरठ |
जंगल में घूमना मेरा पुराना शौक है।वायनाड की यात्रा के दौरान में अबाद ग्रुप के एक रिसोर्ट में ठहरा था,जो सुदूर पहाड़ की चोटियों के बीच उबड़ खाबड़ वैली में स्थित है। बडा ही सुंदर वातावरण था। चारों और घने वृक्ष जिनकी पत्तियों फूलों की तरह प्रत्येक वृक्ष को एकअलग ही रंग बिरंगी आभा प्रदान करती है। ऐसी सुंदर मनोरम छटा देखते ही बनती हैं।
मुख्य रास्ते से लगभग चार से पांच किलोमीटर दूर,कच्चा, पथरीला रास्ता,
और इतना संकरा कि सामने से आने वाले को आगे या पीछे हट कर सुरक्षित स्थान तलासना होता था,जो गाड़ी खाई की ओर होती उसके यात्री तो सांस रोक कर बैठे रहते,लेकिन वहां के ड्राइवर बहुत ही कुशल होते हैं। गाड़ी तेज भी चलाते हैं। मैने उन्हे टोका तो उन्होंने समझाया कि साहब पहाड़ पर गाड़ी का मोसन नही टूटना चाहिए वर्ना गाड़ी रुक गई तो मुशकिल हो जाती है और बचने बचाने के लिए बहुत जल्दी और सटीक निर्णय लेना होता है। तब मै आश्वस्त हो गया, फिर मुझे डर भी नही लगा।एक बार रिसोर्ट की ओर जाते हुए अचानक सभी जीपें रुक गई,यात्री उतर गए।माजरा समझ ने में देर न लगी, बराबर में नीचे की ओर से,चाय के बागान से होती हुई एक मदमस्त हथनी ऊपर की ओर ही आ रही थी।ड्राइवर ने बताया कि आपके लिए आज प्रथम दिन ही हथनी का दर्शन बहुत ही शुभ है। यहां ऐसा ही मानते है। थोड़ा आगे से ही इसका सड़क पार करने का रास्ता है, यह ऊपर की ओर चली जायेगी। इनका रास्ता नही काटना चाहिए,ऐसी भी यहां मान्यता है। शायद हाथियों को पसंद नहीं है कि कोई उनका रास्ता काटे। कभी-कभी तो बहुत देर तक इंतजार करना पड़ता है क्योंकि उनका झुंड मस्ती के साथ चलता है उन्हें किसी की परवाह नहीं होती, बल्कि हमें उनकी परवाह करनी होती है। इस सब में यात्रियों का भी रोमांच बढ़ जाता है, देर तक इंतजार करना अच्छा लगता है,हाथियों के हाव भाव, व्यवहार देखने में बड़ा रोचक लगता है।
रिसोर्ट के कर्मचारियों का व्यवहार बहुत ही कुशल तथा अपनत्व से भरा होता है।उनके चेहरे पर मुस्कान के साथ ऐसा प्रतीत होता जैसे हम एक दूसरे को पहले से जानते हों। विश्वास का अभिन्न परिचय देखने को मिलेगा।आप तो रिसेप्शन पर जाओ, वेलकम ड्रिंक लो,सुस्ताओ,और चेक इन करो।आपका सामान उतार कर आपके रूम तक सुरक्षित पहुंचा दिया जाएगा।
शाम को डिनर के बाद एक छोटे से मैदान में केमफायर का सुंदर इंतजाम देखकर मन आह्लादित हो गया लेकिन मेरी संगनी का सर दर्द कर रहा था तो हम जल्दी ही सोने को चले गये।
रात को आंख खुली तो मैं स्वयं को तरो ताजा महसूस कर रहा था।चुपके से बाहर आया तो चांदनी रात की छटा देखते ही मन मुग्ध हो गया। ना मैने समय देखा, न जंगल की निष्बधता का अहसास ही किया ,मेरे पैर मुझे घने जंगल की ओर लिए चले जा रहे थे। न जाने कैसा अहसास था ,उबड़ खाबड़ पगडंडी पर कहीं चढ़ाई तो कभी ढहलान ।
निष्बधता का भी इतना गहरा सुखद एहसास हो सकता है, मैं पहली बार महसूस कर रहा था। धवल चांदनी के बाद भी पेड़ों के झुरमटो के नीचे अंधेरा था, हां बीच बीच में शरारती किरणे अपनी मौजूदगी का अहसास करा जाती जिसके कारण मुझे भी आगे बढ़ने का हौसला मिल जाता।सामने एक सपाट पत्थर की सिला देख कर मैं थोड़ा सुस्ताने के लिए बैठ गया।अचानक मेरी तंद्रा भंग हुई और मैने जो देखा, वह अनिर्वचनीय दृश्य जिसे देखकर मेरा ऐसा हाल हुआ, काटो तो खून नहीं, मुंह में आवाज नहीं, जो चिल्ला सकूं या कोई प्रतिक्रिया कर सकूं, सुन्न हुआ मैं उस सिला पर न जाने कितनी देर बैठा रहा।
मेरे ऊपर से एक विशालकाय परिंदा जिसके क्रूर पंजों में एक मानव जैसा कुछ लटका हुआ था उसकी छटपटाहट स्पष्ट दिखाई दे रही थी उसका सिर पंजों से दबोचा हुआ था। देखते ही देखते वह परिंदा पास ही एक विशालकाय वटवृक्ष पर जा बैठा। ऐसा देखना तो दूर, कभी सुना भी नही था। उस समय शायद वह परिंदा बट वृक्ष पर बैठने के लिए नीचे की तरफ डाइव लगाता हुआ मेरे ऊपर से गुजरा था।
रोमांच और भय के बावजूद,मैं अचानक उस बरगद के विशाल काय वृक्ष की ओर बढ़ने लगा, मैं जानना चाहता था कि वह जो मैने देखा उसकी सच्चाई क्या है? यदि मैं डरकर वापस लौट जाता हूं तो कोई मेरी बात का यकीन नही करेगा,और यह सब मेरा एक दु:स्वप्न ही माना जायेगा। खतरा होते हुए भी मेरे पैर तेजी से उस vवृक्ष की ओर बढे जा रहे थे। उस मानव का रह रह कर कराहना, अभी भी मेरे कानों में सुनाई दे रहा था। थोड़ी दूर जाने पर मैंने देखा कि वह बरगद का पेड़ नीचे घाटी से ऊपर तक छाया हुआ है, सामने मचान जैसा उस दरिंदे का घोंसला नजर आ रहा था ,जिस पर वह उस मानव को रखकर नोच रहा था। थोड़ी देर में कराहट की आवाज आनी बंद हो गई थी। मैं नीचे ढलान पर उतरता हुआ उस वृक्ष के नीचे तक पहुंच गया। वहां का मंजर और भी भयानक था वहां चारों तरफ हड्डियों का ढेर लगा हुआ था ।भयानक बदबू आ रही थी। जहां खड़े रहना भी मुश्किल हो रहा था। कुछ मानव कंकाल के अंग तथा अन्य जानवरों की हड्डियां देखी जा सकती थी। यह देखकर मेरी चीख निकल गई। भय और रोमांच से मेरा शरीर कांपने लगा। प्रत्युत्तर में उस परिंदे ने ऊपर से बहुत ही जोर से चीत्कार किया जो इतना भयानक था जैसे पूरी घाटी कांप उठी हो । फडफड़ा कर उसने कुछ ऐसा किया की पेड़ की मोटी मोटी डालियां चरमरा कर टूट गई। मैं अभी होश में था और संभावित खतरे को भांपते हुए मैं उसी पेड़ की एक खोखर में घुस गया। थोड़ी देर तक ऊपर से हमले जैसी किसी प्रतिक्रिया का एहसास भी नजर नही आया। शायद उस परिंदे ने मुझे देखा नही था,मेरी चीख ने ही उसे विचलित किया होगा। मेरी सांसे अभी भी असंतुलित थी। जीवन में अकस्मात भय लगना अलग अनुभव था, मगर आज का मंजर कुछ अलग ही था। मेरे सिर के ऊपर एक भयानक परिंदा किसी इंसान को खा रहा है और उसको बचाने के लिए मैं कुछ नही कर पा रहा हूं ,उल्टे अपनी जान गंवाने का खतरा मंडरा रहा है।मेरे पास मेरा फोन भी नही था जो मै घटना के बारे में किसी को बता कर अपनी मदद के लिए बुला सकूं। डरते रहने और कांपत्ते रहने के अलावा मेरे पास दूसरा कोई भी विकल्प नहीं था। करीब 10 मिनट के बाद जब तक शायद वह उस मानव को चट कर चुका था बहुत जोर से फड़फड़ा हट की आवाज आई पूरा पेड़ जैसे हिल गया हो और सू ऊं.... की आवाज के साथ वह परिंदा आसमान की तरफ उड़ गया। लगा जैसे किसी द्रुत गति से कोई मिसाइल या रॉकेट गुजरा हो। कुछ ही समय में वह आकाश की अनंत ऊंचाई में गुम हो गया। मुझे समझ नही आ रहा था कि मैं अभी होश में हूं या बेहोश ही हूं। अर्ध विक्षिप्त सा मैं अभी भी उसी खोखर में घुसा हुआ था। जब मुझे विश्वास हो गया कि अब दूर दूर तक परिंदा पास में नहीं है तब मैं डरता डरता उस खोखर से बाहर निकला। फिर से मुझे उस भयानक दुर्गंध का एहसास हुआ जिसे मैं कुछ क्षण पहले तक अपने डर के सामने भूल चुका था।
मैं जितनी जल्दी हो सकता था उस जगह से दूर चला जाना चाहता था। पेड़ों की छांव तले से गुजरता हुआ मैं आगे बढ़ने लगा । खुले मैदान में आने से डर लग रहा था कि कहीं वह परिंदा झपट मारकर मुझे ना उठाकर ले जाए जैसे उस मानव को उठाकर लाया था। रिसॉर्ट में पहुंचने के बाद मुझे एहसास हुआ कि अभी सूर्योदय में काफी समय है क्योंकि किसी किसी के ही कमरे की लाइट जल रही थी वरना अभी तक चारों तरफ सन्नाटा ही पसरा था। मैं लगभग हांफता हुआ सा अपनी कॉटेज में पहुंचा। वहां मैडम अभी भी आराम से सो रही थी। मैं सीधा वॉशरूम में गया और फ्रेश होने के लिए बैठ गया। फिर से सारा दृश्य मेरी आंखों के सामने से गुजरने लगा और मैं बैठा बैठा पसीने पसीने हो गया।
सुबह सुबह मैं रिसोर्ट के मैनेजर के पास पहुंचा। उसे सारी घटना से अवगत कराया। वह बोला कि आपको उधर नहीं जाना चाहिए था। हमने तो वहां पर खतरे का/ चेतावनी का बोर्ड लगा रखा है और ऊंची फेंसिंग भी की हुई है तब आप वहां किस रास्ते से पहुंचे? मैंने कहा कि अंधेरा था इसलिए मैं चेतावनी का बोर्ड नहीं पढ़ पाया और जहां से फेंसिंग टूटी हुई है मैं वहीं से जंगल में प्रवेश कर गया हूंगा। मैनेजर ने बताया कि हां हमें पता है,जंगल के तशकर कई बार फेंसिन तोड़ कर गैर कानूनी तरीके से इमारती लकडियों की चोरी कर ले जाते हैं।उस पेड़ के नीचे पहले भी कुछ कंकाल पड़े होने की बात सामने आई थी, तब हम सब का तो यही विचार था कि यहां जंगली हिंसक पशु, यदा-कदा किसी का शिकार कर वहां बैठकर खाते होंगे। इसलिए कोई टुरिस्ट उधर न जाए उस के लिए चेतावनी बोर्ड लगे हैं,लेकिन परिंदे वाली बात कभी सामने नहीं आई। हां एक बार चौकीदार ने रात को किसी विशालकाय परिंदे को उड़ते जरूर देखा था लेकिन हमने उसे उसका
वहम ही माना कि यह नींद में या नशे में रहा होगा इसलिए इसे वह परिंदा विशालकाय नजर आया। लेकिन आपके बताने के बाद यह चिंता का विषय है अब उस ने वन विभाग के, वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के बड़े अधिकारियों को फोन पर सारी घटना बताई ।
दोपहर होते होते वहां वन विभाग की टीम आ पहुंची। इस बात को किसी के सामने न बताने की मुझे हिदायत दी गई थी ताकि टूरिस्ट लोगों पर इसका विपरीत असर न पड़े। वर्ना व्यापार पर बुरा प्रभाव पड़ता।
एक घंटे बाद हम ठीक उसी वृक्ष के सामने उस पत्थर की सिला के पास पहुंचे जहां से उस दरिंदे का घोंसला साफ दिखाई देता था। वन विभाग की टीम अपने साथ ड्रोन कैमरा भी लेकर आई थी। वहां से ड्रोन को उड़ा कर घोंसले के ऊपर देखा गया तो पाया कि एक नर कंकाल पडा हुआ है। उसकी गर्दन भी टूटकर अलग पडी थी।दोनों हाथ टूटकर कर नीचे शाखाओं के ऊपर पड़े थे। उसके बाद ड्रोन कैमरे को धीरे-धीरे वृक्ष के चारों तरफ घुमाकर फोटो लिए गए तो मेरे कथन सच साबित हुए।कुछ देर बाद ही लोकल पुलिस वहां पहुंच चुकी थी। उन्होंने भी ड्रोन से सारा नजारा देखा । तत्काल वहां के उच्च अधिकारियों को सूचना देकर उस कंकाल को उतरवा कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने का इंतजाम किया गया । नीचे पड़े कंकालों के अलग-अलग सैंपल भर कर dNA कराने के लिए भेजे गए। उस वृक्ष के चारो ओर कैमरे लगा दिए ताकि उस दरिंदे पक्षी पर नजर रखी जा सके।अगले दिन कुछ भी विशेष नही था , तीसरी रात को वह अपने खूनी पंजो में जंगली सुवर को लेकर पहुंचा तो कैमरे में कैद हो गया।अब विचारणीय प्रश्न यह था कि जुलोजिकल हिस्ट्री में वर्तमान में इस तरह का कोई पक्षी था ही नही।इस की चर्चा पूरी दुनिया के ....में हो रही थी।मेरे प्रत्यक्षदर्शी होने की वजह से सैकड़ों लोगों को मैं अपना इंटरव्यू दे चुका था। खोज में पाया गया कि यह पक्षी हवाई जहाज से भी अधिक ऊंचाई पर लंबे समय तक उड़ान भरता है और कई कई दिन तक हवा में रहता है।भूख लगने पर रात के किसी समय पृथ्वी की तरफ आता है और सौ किलो से अधिक भार वाले शिकार को भी पंजों में दबोच कर द्रुत गति से उड़ने में सक्षम है।इसकी छान बीन में एयरफोर्स की भी मदद लेनी पड़ी।पहले तो इसे जिंदा पकड़ने की कोशिश की गई। हेलीकॉप्टर से लाइट गन मशीन का प्रयोग किया गया,ताकि घायल कर इसे अपने कब्जे में लिया जा सके।लेकिन कामयाबी नही मिली। शिकार खाने के समय हैवी से हैवी ट्रेंकुलाइजर प्रयोग किए गए लेकिन सफ लता कोसो दूर थी।अंतत: सेटलाइट से उसकी लोकेशन पर नजर रखी गई तो चौंकाने वाले रिजल्ट सामने आए।इसका एक बडा परिवार पृथ्वी पर फल फूल रहा है। अधिकतर वर्षा वन में इनका डेरा है।लेकिन यह परिंदा एक बार किसी मानव का शिकार करने में बाद आदमखोर बन गया है।इसके ठिकाने दक्षिण भारत, श्रीलंका और आसपास के द्वीपों पर पाए गए।अब वह इंटरनेशनल विषय /खतरा बन चुका है इस आदमखोर दरिंदे को मारने के लिए एयर फोर्स एक अपना हेलीकॉप्टर तक खो चुकी है । इसकी स्पीड किसी जेट विमान से भी अधिक है और उससे भी अधिक ऊंचाई पर उड़ने में सक्षम है। तब किसी तरह इसे फाइटर जहाज से मिसाइल हमला करके ही मारा जा सकता है अन्य पक्षियों को संरक्षित करने की बात चल रही है। ताकि इस दुर्लभ पक्षी को भी दुनिया में जीने का हक मिल सके। पर्यावरणविद इस विषय पर नित नए विचार प्रस्तुत कर रहे है। कई देशों की कोस्टल नेवी तथा एयर फोर्स को भी अलर्ट पर रखा गया है ताकि यदि दरिंदा मानव बस्ती में विचरने की कोशिश करेगा तो मार गिराने का आदेश मिल चुका है। उस पर एनिमल केयर फाउंडेशन वाले भी कहां चुप बैठने वाले हैं। रोज कोई ना कोई आदेश पारित करते और कोर्ट में जाने की धमकी देते हैं।उनका कहना है कि आप अपने लोगों को अपना बचाव करना सिखाएं।किसी भी प्राणी के जीवन/ उसकी नsल को खत्म नही किया जाना चाहिए। मुझे तो डर है कि जिस प्रकार वह परिंदा गायब हो गया और ढूंढे से भी नही मिल पा रहा है मुझे भी गायब हो जाना चाहिए, कही कोई संस्था मुझे ही कोर्ट में खड़ा न कर दे कि यही व्यक्ति इस झगड़े की जड है। यह चेतावनी बोर्ड लगे होने के बाद भी प्रतिबंधित एरिया में क्यों गया? अतः अब मैं भी गायब हो जाता हूं,फिर एक नई रोमांचक कहानी के साथ मिलता हूं।
आप तब तक खुश रहिए,और इंतजार कीजिए!!! उसका क्या हुआ???जिसका मुझे भी नही पता।।
आपका .. नरेंद्र त्यागी "नीर" मेरठ